भारत के संविधान, राष्ट्रध्वज और जाति व्यवस्था पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों की आलोचना अक्सर होती रही है. आज़ादी के बाद से अब तक अलग-अलग मौक़ों पर संघ ने इन तीनों अहम मुद्दों पर अपने विचार कई बार बदले हैं. भारत के संविधान के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का रिश्ता काफ़ी जटिल रहा है.
‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ नाम की मशहूर किताब में संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर लिखते हैं, “हमारा संविधान भी पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधानों के विभिन्न अनुच्छेदों का एक बोझिल और विषम संयोजन मात्र है. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हमारा अपना कहा जा सके. क्या इसके मार्गदर्शक सिद्धांतों में एक भी ऐसा संदर्भ है कि हमारा राष्ट्रीय मिशन क्या है और जीवन में हमारा मुख्य उद्देश्य क्या है? नहीं!”
कई इतिहासकारों ने इस बात का ज़िक्र किया है कि भारत को आज़ादी मिलने से एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ ने लिखा कि “भाग्य के बूते सत्ता में आए लोग भले ही तिरंगा हमारे हाथों में थमा दें, लेकिन हिंदू इसका कभी सम्मान नहीं करेंगे और इसे अपनाएंगे नहीं. “तीन शब्द अपने आप में एक बुराई है और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित रूप से बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करेगा और देश के लिए हानिकारक है.”
एजी नूरानी एक जाने-माने वकील और राजनीतिक टिप्पणीकार थे जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट में काम किया. अपनी किताब ‘द आरएसएस: ए मेनेस टू इंडिया’ में वे लिखते हैं कि ‘संघ’ भारतीय संविधान को अस्वीकार करता है. वे लिखते हैं, “इसने (संघ ने) 1 जनवरी 1993 को अपना ‘श्वेत पत्र’ प्रकाशित किया, जिसमें संविधान को ‘हिंदू विरोधी’ बताया गया और देश में वह किस तरह की राजनीति स्थापित करना चाहता है इसकी रूपरेखा बताई गई. इसके मुखपृष्ठ पर दो सवाल पूछे गए- ‘भारत की अखंडता, भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द को नष्ट करने वाला कौन है?’ और ‘भुखमरी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और अधर्म किसने फैलाया है?’ इसका जवाब श्वेत पत्र में ‘वर्तमान इंडियन संविधान’ शीर्षक के तहत दिया गया है.”
ये श्वेतपत्र 6 दिसंबर 1992 को हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के कुछ ही दिन बाद छपा था. एजी नूरानी लिखते हैं कि इस श्वेत पत्र के हिंदी शीर्षक में ‘इंडियन’ शब्द का इस्तेमाल एक मक़सद से किया गया. वे लिखते हैं, “इसका मतलब यह है कि यह हिंदू (या भारतीय) संविधान नहीं बल्कि इंडियन संविधान है.”
नूरानी ने दर्ज किया है कि श्वेत पत्र की प्रस्तावना में स्वामी हीरानंद ने लिखा, “वर्तमान संविधान देश की संस्कृति, चरित्र, परिस्थितियों आदि के विपरीत है. यह विदेशोन्मुखी है’ और ‘वर्तमान संविधान को निरस्त करने के बाद ही हमें अपनी आर्थिक नीति, न्यायिक और प्रशासनिक ढांचे और अन्य राष्ट्रीय संस्थाओं के बारे में नए सिरे से सोचना होगा.”
अपनी किताब में नूरानी लिखते हैं कि जनवरी 1993 में आरएसएस के प्रमुख रहे राजेंद्र सिंह ने लिखा कि संविधान में बदलाव की ज़रूरत है और भविष्य में इस देश के लोकाचार और प्रतिभा के अनुकूल संविधान अपनाया जाना चाहिए. 24 जनवरी 1993 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने भी संविधान पर नए सिरे से विचार करने की मांग दोहराई थी.